Friday 24 February 2012

मंजिल


मंजिल दूर कहीं दस्तक दे रही है
रास्ता भी लंबा होता जा रहा है
मैं सोचता हूँ कि अब तो पा लूँगा
लेकिन कदम बढ़ते जाते हैं...
मंजिल भी अपना आकार बढ़ा लेती है
दूर से मुझे इशारा सा करती है
लेकिन पास आने पर और दूर हो जाती है
मैं जानता हूँ कि वह बहुत दूर है
मुझे तो बस चलते जाना है.....
बस चलते जाना है..........
बस चलते जाना है.......

Monday 1 November 2010

कैसे नाम और कैसे काम

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के लागू हो जाने से जन साधारण को बहुत राहत मिली है। इसका बेबाकी से प्रयोग कर जनसाधारण अपने मौलिक अधिकार से वंचित नहीं है। इसी की वजह से आम आदमी सरकारी एवं गैर सरकारी क्षेत्रों में हो रहे क्रिया कलापों से अवगत है और जहाँ भी संशय की स्थिति बनी है वहां पर वह आरटीआई के माध्यम से सूचनाएं प्राप्त कर रहा है।
अभी हाल ही में आदर्श सोसाइटी घोटाले की बात सामने आई, तो पता चला कि इसमें बड़े-2 आला अधिकारी शामिल हैं। अब रक्षक ही भक्षक बन जाएं तो भला देश का क्या होगा। उन शहीदों को याद करो जिनके लिए आदर्श सोसाइटी का निर्माण किया गया था। अब तो सत्ता के मोह में नेता इतने चूर हो गए हैं कि उन्हें सिर्फ अपने और अपने परिवारों वालों की ही चिंता है। आम लोगों की क्या होगी। पर वे ये भूल जाते हैं कि अधिकार सुख मादक तो जरूर है लेकिन इसमें कोई सार नहीं होता। अंत में असत्य तो कभी न कभी समाने आ ही जाएगा। इसका श्रेय भी आरटीआई को जाता है। चंद्रगुप्त नाटक में कही गई लाइन अपने आप में स्पष्ट हैं कि 'अधिकार सुख कितना मादक और सारहीन है' जब तक सत्ता है तब तक सब कुछ अच्छा लगता है। लेकिन जब झूठ की कलई खुलती है तो वो किसी को नहीं बख्सती। जैसा की नाम से स्पष्ट है आदर्श सोसाइटी
इसमें भ्रष्टाचारियों ने कहीं भी आदर्श का मतलब नहीं समझा, नाम आदर्श और काम .............
ठीक इसी प्रकार सत्यम घोटाले की बात करें तो सत्यम कंपनी में सत्य तो कहीं नहीं मिला सिवाय झूठ के अब आप ही बताइए कैसे कैसे नाम और कैसे कैसे काम।..........

Tuesday 17 August 2010

स्वतंत्रता दिवस महज एक औपचारिकता....

हमारे देश को आजदी मिले 63 साल हो चुके हैं लेकिन जैसे-जैसे साल बीतते जा रहे हैं वैसे-वैसे एक नया रूप देखने को मिल रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि लोग इस स्वतंत्रता के पीछे का असली राज भूलते जा रहे हैं और अपनी जिंदगी अपने तरीके से गुजर-बसर कर रहे हैं। आजादी का क्यों मिली कैसे मिली आजादी के बाद क्या करना है, क्या दायित्व हैं सबकुछ मानो नदारद हो चुके हैं।
आज के भौतिकवादी युग में हमारी युवा पीढ़ी को तो राष्ट्रगान-और राष्ट्रगीत में अंतर ही नहीं पता और न ही किसी महापुरुष का नाम तक याद रहा है। उन्हें सिर्फ याद है तो नये हीरो-हीरोइन, और उनकी खुद की दुनिया। साथ ही इस बदलते स्वरूप में जहाँ सरकारी महकमें में न तो कोई उल्लास है न कोई उमंग महज एक औपचारिकता के रूप में लोग एकत्रित हुए और चले गए। बाकी अपनी छुट्टी का आनंद लेते हैं। सच मायने में देश के लिए जिसमें भाव, जज्बा, जुनून, हिम्मत नहीं वह पत्थर दिल ही कहलाएगा। राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त जी ने इन पंक्तियों के माध्यम से देशवासियों के कोमल हृदय में रस भर दिया-

जो भरा नहीं है भावों से,
जिसमें बहती रसधार नहीं
वह हृदय नहीं है पत्थर है
जिसमें स्वदेश का प्यार नही, ...

मेरे देशवासियों नई पीढ़ी के युगांधरों अपने स्वयं को जानो और पहचानो और अपने स्वदेश से प्यार करो.... उनकी कुर्बानी याद करो जो लौट कर वापस नहीं आए..........जरा याद करो कुर्बानी

जय हिंद !!! जय हिंद !!! जय हिंद !!! जय हिंद !!! जय हिंद

Thursday 5 August 2010

एक तलाश जिंदगी की ....

एक तलाश जिंदगी की, कि तुझे पाऊँ...
तुझे ढूँढने के लिए मैं कहाँ जाऊँ
तुझे तराशा मैंने हर जगह, पर मिला नहीं कहीं
दुनिया की आपाथापी में गुम हो गए यहीं कहीं
अब भी लगता है कि तुम हो शायद यहीं कहीं
अपने को समझाया मन पर अंकुश लगाया
फिर छटपटा कर मन ने सोते हुए को जगाया
और लग गया तुझे तलाशने की ख्वाहिश में
पर तेरा दीदार न हुआ इस कल्पना की दुनिया में
आज फिर यहीं से जारी है मेरी तलाश
कि पा जाऊं तुझे मैं बस एक बार
फिर वही तलाश जिंदगी की, कि तुझे पाऊँ

Monday 5 July 2010

जी चाहता है...


इन आँखों में डूबने को जी चाहता है

तेरी आँखों से दुनिया देखने को जी चाहता है

बनके समंदर तेरी प्यास बनूं जी चाहता है

गेंसू की घनी छांव में सोने को जी चाहता है

खुशबू बनकर तेरी सांसों में महकने को जी चाहता है

तुझे चाहते जाने को जी चाहता है

तेरा दीदार करने को जी चाहता है

तुझे अपना बनाने को जी चाहता है।



Wednesday 30 June 2010

हाल-ए-दिल

अपने हाल-ए-दिल को कैसे बयां करूँ,
जिसको बताया उसने कहा, तेरे दर्द को कैसे दूर करूँ
तभी सुनी एक ने दास्तां मेरी, और नम हुई आंख उसकी...
दोस्त, क्यों भर आई तुम्हारी आंखें, अभी तो दास्तां शुरू भी नहीं हुई
उसने कहा जब दर्द है तेरी दास्तां के आगाज, में तो इसका अंजाम क्या होगा,
तभी मैंने अपना हाल-ए-दिल सुनाया, और उसे अपना बनाया।।

Tuesday 29 June 2010

तूने मुझे क्या से क्या बना दिया...

तेरी दोस्ती को समर्पित.......
तूने मेरे सोये मन को जगा दिया....
जाने क्या तूने पिला दिया
मेरा अंतर तक हिला दिया,
नदिया की धारा बनकर,
मुझ किनारे पर ला दिया,
तूने मुझे एक नये व्योम पर ला दिया,
मेरे एकाकीपन को दूर कर...
मुझे दीवाना बना दिया,
जाने क्या तूने पिला दिया...
मेरा अंतर तक हिला दिया,
मेरे तनहा आलय को, मदिरालय बना दिया,
साकी बनकर तूने मुझे ये क्या पिला दिया,
मेरा अंतर तक हिला दिया,
तूने मुझे क्या से क्या बना दिया ।।