Monday 1 November 2010

कैसे नाम और कैसे काम

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के लागू हो जाने से जन साधारण को बहुत राहत मिली है। इसका बेबाकी से प्रयोग कर जनसाधारण अपने मौलिक अधिकार से वंचित नहीं है। इसी की वजह से आम आदमी सरकारी एवं गैर सरकारी क्षेत्रों में हो रहे क्रिया कलापों से अवगत है और जहाँ भी संशय की स्थिति बनी है वहां पर वह आरटीआई के माध्यम से सूचनाएं प्राप्त कर रहा है।
अभी हाल ही में आदर्श सोसाइटी घोटाले की बात सामने आई, तो पता चला कि इसमें बड़े-2 आला अधिकारी शामिल हैं। अब रक्षक ही भक्षक बन जाएं तो भला देश का क्या होगा। उन शहीदों को याद करो जिनके लिए आदर्श सोसाइटी का निर्माण किया गया था। अब तो सत्ता के मोह में नेता इतने चूर हो गए हैं कि उन्हें सिर्फ अपने और अपने परिवारों वालों की ही चिंता है। आम लोगों की क्या होगी। पर वे ये भूल जाते हैं कि अधिकार सुख मादक तो जरूर है लेकिन इसमें कोई सार नहीं होता। अंत में असत्य तो कभी न कभी समाने आ ही जाएगा। इसका श्रेय भी आरटीआई को जाता है। चंद्रगुप्त नाटक में कही गई लाइन अपने आप में स्पष्ट हैं कि 'अधिकार सुख कितना मादक और सारहीन है' जब तक सत्ता है तब तक सब कुछ अच्छा लगता है। लेकिन जब झूठ की कलई खुलती है तो वो किसी को नहीं बख्सती। जैसा की नाम से स्पष्ट है आदर्श सोसाइटी
इसमें भ्रष्टाचारियों ने कहीं भी आदर्श का मतलब नहीं समझा, नाम आदर्श और काम .............
ठीक इसी प्रकार सत्यम घोटाले की बात करें तो सत्यम कंपनी में सत्य तो कहीं नहीं मिला सिवाय झूठ के अब आप ही बताइए कैसे कैसे नाम और कैसे कैसे काम।..........